शारजहां के प्रिंस ने बिश्रोई समाज को दी 8 एकड़ जमीन
पर्यावरण के प्रति बिश्रोई समाज की गंभीरता एवं संजीदगी पूरे विश्व में एक मिसाल है। पेड़ों को बचाने के लिए शहादत देने की कहानी भी इसी समाज से जुड़ी है। अब ऐसी शहादत को सलाम करने और पूरे विश्व के लोगों को इस अनूठी कहानी को बताने की पहल दुबई के शारजहां के शेख माजिद अली और अखिल भारतीय बिश्रोई महासभा ने की है।
इस कड़ी में दुबई के शारजहां में 8 एकड़ जमीन शारजहां के प्रिंस ने दी है। इसके साथ ही पेड़ बचाने के लिए शहीद हुई मां अमृता देवी के नाम पर शारजहां में एक पार्क और भवन बनाया जाएगा। 8 एकड़ जमीन पर बिश्रोई महासभा और जंभवाणी साहित्य अकादमी की ओर से खेजड़ली के पेड़ लगाए जाएंगे और पार्क एवं भवन बनाया जाएगा।
यह अनूठी एवं ऐतिहासिक पहल अखिल भारतीय बिश्रोई महासभा मुकाम एवं जंभवाणी साहित्य अकादमी बीकानेर की ओर से दुबई में हुए दो दिवसीय सम्मेलन में की गई। इस पर्यावरण शिखर सम्मेलन में विशेष रूप से शारजहां के शेख माजिद अली के अलावा जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारुख अब्दुल्ला, अभिनेता विवेक ओबराय भी पहुंचे।
दरअसल बिश्रोई समाज पर्यावरण को लेकर पूरे विश्व में एक नजीर पेश करता है। पेड़ों एवं वन्य प्राणियों के प्रति इस समाज का अनूठा एवं ऐतिहासिक योगदान रहा है। राजस्थान के जिला जोधरपुर के खेजड़ली गांवों के लोगों ने करीब 236 साल पहले मां अमृता देवी सहित 363 लोगों ने तत्कालीन महाराजा के कारिंदों द्वारा हरे पेड़ काटने का विरोध जताया था।
एक महिला अमृता देवी के नेतृत्व में बारी-बारी से 363 लोग पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए। पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाने के एक साथ इतनी संख्या में अपनी जान कुर्बान करने की मिसाल और कहीं नहीं मिलती। जानकारी के अनुसार वर्ष 1787 में जोधपुर के महाराजा अभयसिंह ने मेहरानगढ़ में फूल महल का निर्माण शुरू कराया। इसके लिए लकडिय़ों की जरूरत पड़ी। महाराजा के कारिन्दों ने खेजड़ली गांव में एक साथ बड़ी संख्या में पेड़ देखे तो काटने पहुंच गए। गांव की अमृता देवी बिश्नोई ने इसका विरोध किया।
विरोध को अनसुना करने पर अमृता देवी पेड़ के चारों तरफ हाथों से घेरा बना कर खड़ी हो गई। राजा के कारिंदों ने कुल्हाड़ी से वार कर उसे मार दिया। इसके बाद बारी-बारी से मां अमृता देवी की तीन बेटियों ने बलिदान दिया। पेड़ बचाने के लिए मां अमृता देवी के शहीद होने का समाचार आसपास के गांवों में फैला तो बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गए। आसपास के 60 गांवों के 217 परिवारों के 294 पुरुष, 65 महिलाएं विरोध करने गांव पहुंच गईं।