बरसाती नाले के चलते संकटदायक बनती है नदी
नदी में आमतौर पर मानसून के सीजन में किसी डैम या बैराज का पानी न आकर के हिमाचल के सिरमौर, मोरनी, पंचकूला व पटियाला जिलों का बरसाती पानी आता है। इसके अलावा इस नदी में झासा के पास मारकंडा नदी, जबकि जंसूई में टांगड़ी नदी का पानी छोड़ा जाता है। इसी बरसाती नाले से ही जोआ नाला, रंगोई नाला, सरहिदं चो, बरेटा ड्रेन, टोडरपुर ड्रेन भी इसी बरसाती नाले से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा घग्घर नदी पर पंचकूला जिले में कालका-शिमला रोड पर कौशल्या डैम बना हुआ है।
इस डैम में सीमित मात्रा के बाद पानी घग्घर में छोड़ा जाता है। इसके अलावा मानसून में तेज बारिश, चंडीगढ़, पटियाला, पंचकूला सहित कई इलाकों का बरसाती पानी गिरता है। हिमाचल के सिरमौर में मानसून में 1124, सोलन में 912, चंडीगढ़ में 849, पंचकूला में 911 जबकि पटियाला में 541 मिलीमीटर होने वाली बरसात इस नदी को उफान पर ला देती है। इसके अलावा इस नदी के तटबंधों पर पिछले 2 दशक में दोनों राज्यों में 1200 से अधिक पाइपलाइन बनी हुई हैं, जिनके जरिए करीब 6 लाख हैक्टेयर भूमि सिंचित होती है। इसके अलावा नदी के तटबंध जंगल का रूप ले चुके हैं।
ऐसे पाया जा सकता है छुटकारा
सिरसा और फतेहाबाद जिलों में भाखड़ा के जरिए पूरे प्रदेश में नहरों का सबसे बड़ा नेटवर्क है। सिरसा जिला में करीब 100 से अधिक चैनल, माइनर व डिस्ट्रीब्यूटरी हैं। इन नहरों के जरिए लाखों एकड़ फसल सिंचित होती है। सिरसा जिला में करीब 3 लाख 96 हजार हैक्टेयर कृषि भूमि है। इसमें से 2 लाख 69 हजार हैक्टेयर नहरी पानी जबकि 1 लाख 25 हजार हैक्टेयर नलकूपों के जरिए सिंचित होती है। घग्घर नदी के तटबंधीय इलाके के करीब 50 गांवों के लोग रबी सीजन में धान और नरमा की करीब 60 हजार हैक्टेयर फसलें सिंचित होती है। घग्घर में बाढ़ और सिरसा के खेती के गणित को समझने से पता चलता है कि शासन-प्रशासन ने आंख पर पट्टी बांध रखी है। सिरसा जिला में करीब 339 गांव हैं। नहरों का बड़ा नेटवर्क पहले से ही है।
डबवाली, ऐलनाबाद, बड़ागुढ़ा, ओढां खंड के किसान लंबे समय से खरीफ सीजन में घग्घर के पानी को लेकर आवाज उठा रहे हैं। इन खंडों के गांवों में नहरों के जरिए घग्घर का पानी पहुंचाया जा सकता है। इससे मानसून में घग्घर में बाढ़ का खतरा भी टल जाएगा और किसानों को सावनी की फसलों के लिए घग्घर का शिल्टयुक्त पानी भी मिल जाएगा। घग्घर नदी में इस समय ओटू हैड बना हुआ है। ओटू हैड के जरिए निकलने वाली नहरों को आगे चैनल के जरिए दूसरे हिस्सों में आने वाली नहरों से जोड़ा जा सकता है। इसी तरह से फतेहाबाद में भी एक हैड बनाकर नहरों में पानी छोड़ा जा सकता है। कैथल जिला में भी नहरों में पानी छोडऩे की परियोजना बनाई जा सकती है। इन परियोजनाओं के पूरा होने के बाद हर दस साल बाद आने वाली बाढ़ से होने वाले 100 से 200 करोड़ रुपए के नुक्सान से बचा जा सकता है।
हरियाणा में अंसतुलित है नहरों का नेटवर्क
राज्य में 1966-67 में कुल 1325 हजार हैक्टेयर भूमि की सिंचाई नहरों द्वारा की जाती थी जो अब बढक़र करीब 2107 हजार हैक्टेयर हो गई है। 1966 में मुख्य नहरों एवं वितरिकाओं की संख्या 910 थी जो अब 1600 करीक हो गई है। इसी तरह से 1966 में कुल 4708 डिस्ट्रीब्यूटरी थी, जिनकी संख्या अब 7100 से अधिक हो गई है।
हरियाणा में खेती का स्वरूप भी भौगोलिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न है। दक्षिण हरियाणा में अधिकांश किसान मोटे तौर पर खरीफ की फसल पर निर्भर रहते हैं। यद्यपि गेहूं और सरसों जैसी रबी की फसलें भी किसान बोते हैं, लेकिन यहां के किसानों की मुख्य खेती ज्वार, बाजरा, सरसों और ग्वार की खेती है। वहीं हिसार, सिरसा, जींद, पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, अंबाला और जगाधरी में किसान धान और कपास फसलें अधिक बोते हैं। विशेष बात यह है कि हरियाणा में नहरों का नेटवर्क अंसतुलित है। राज्य की 1630 नहरों में से 666 नहरें अकेले सिरसा, हिसार और फतेहाबाद में बनी हैं।