आम तौर पर अभिभावक अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाते हैं, लेकिन हरियाणा के पलवल जिले में एक अनोखी घटना ने सबका ध्यान आकर्षित किया। यहां एक महिला भक्त अपने आराध्य लड्डू गोपाल का दाखिला करवाने के लिए स्कूल पहुंच गई। भक्त रामरती देवी ने न केवल दाखिला करवाया बल्कि नियमित फीस देने का संकल्प भी लिया। पलवल के भुलवाना गांव की रहने वाली रामरती देवी ने अपनी अटूट आस्था का अनूठा उदाहरण पेश किया और इसे लेकर अब पूरे गांव और सोशल मीडिया पर चर्चा हो रही है।
कैसे हुआ लड्डू गोपाल का दाखिला?
रामरती देवी ने पलवल के प्रसिद्ध बृजरज स्कूल में अपने आराध्य लड्डू गोपाल का दाखिला करवाने का निश्चय किया। जब वे स्कूल के अध्यक्ष मुकेश कुमार से मिलीं, तो उन्हें अपने आराध्य का दाखिला करवाने की इच्छा जताई और फीस भी अदा करने का प्रस्ताव रखा। हालांकि, शुरुआत में अध्यक्ष मुकेश कुमार ने फीस लेने से मना किया, लेकिन रामरती देवी की दृढ़ता देखकर उन्होंने फीस स्वीकार की और दाखिले की प्रक्रिया पूरी करवाई।
हर रोज स्कूल छोड़ने और लेने आएंगी भक्त रामरती
रामरती देवी ने अध्यक्ष को विश्वास दिलाया कि वह रोज़ाना लड्डू गोपाल को स्कूल छोड़ने और लेने के लिए आएंगी। इतना ही नहीं, उन्होंने हर महीने की फीस भी नियमित रूप से जमा करने का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि उनके लिए लड्डू गोपाल सिर्फ एक प्रतिमा नहीं हैं, बल्कि उनके बेटे समान हैं, जिनके लिए वे मां की भूमिका निभा रही हैं।
आस्था की मिसाल बन गईं रामरती देवी
रामरती देवी की यह अनोखी आस्था देखते ही देखते चर्चा का विषय बन गई। जहां एक ओर कुछ लोग इसे उनकी भक्ति की चरम सीमा मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस खबर ने पूरे क्षेत्र में धार्मिक आस्था का एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया है।
मुकेश कुमार ने आस्था का किया सम्मान
बृजरज स्कूल के अध्यक्ष मुकेश कुमार ने भी इस अनोखे दाखिले को आस्था का सम्मान बताते हुए कहा कि रामरती देवी के जज्बे और भक्ति ने उन्हें प्रभावित किया है। उन्होंने कहा, “यह हमारी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है कि हम भक्तों की भावनाओं का सम्मान करें। रामरती देवी का समर्पण देखकर हम भी भावुक हो गए और खुशी-खुशी इस पहल का हिस्सा बने।”
चर्चा का विषय बनी रामरती देवी की श्रद्धा
रामरती देवी के इस कदम से पूरे गांव में चर्चा का माहौल है। सोशल मीडिया पर भी लोग उनकी श्रद्धा की सराहना कर रहे हैं। यह घटना यह दर्शाती है कि किस तरह आस्था के कारण लोग अपने आराध्यों को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाते हैं। यह सिर्फ भक्ति का उदाहरण नहीं है, बल्कि एक संदेश भी है कि अपने विश्वासों के प्रति निष्ठा कैसे लोगों को प्रेरित कर सकती है।