हरियाणा का वो मंदिर जहां शाहजहां के बेटे को मिला था जीवनदान
अध्यात्म की नगरी सिरसा में डेरा बाबा सर साईनाथ अछूती आस्था का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि सिरसा का नाम बाबा सरसाईनाथ के नाम पर ही पड़ा। इसीलिए सिरसा को सरसाई नगरी के नाम से भी जाना जाता है। तेरहवीं सदी में सिरसा शहर के बेगू रोड पर बाबा सरसाईनाथ ने मंदिर का निर्माण करवाया था। बाबा सरसाईनाथ एक पहुंचे हुए संत थे। उन्होंने अपने जीवन में बहुत चमत्कार किए। ऐसा भी माना जाता है कि शाहजहां के बेटे दारा शिकोह को सिरसा में आकर जीवनदान मिला था।
नाथ समुदाय के अनुयायियों को भगवान शिव की भक्ति के लिए जाना जाता ह। इन भक्तों की आदत होती है वे जहां भी रहते हैं, वहां एक शिव मंदिर बनाते हैं और अपना डेरा बनाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर बाबा सरसाईनाथ ने सिरसा के बेगू रोड पर तेरहवीं सदी में बनाया था। इसे सिरसा में हिसार द्वार के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बाबा सरसाईनाथ ने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर किया था। यहां मंदिर में बाबा सरसाईनाथ प्रार्थना, धार्मिक कर्म और चमत्कारों में अपना ध्यान लगाते थे। मंदिर के शिलालेखों के अनुसार नीलकंठ पुष्प अति समुदाय के एक संत थे और शुरुआत में उन्होंने सिरसा में भगवान शिव को समर्पित मंदिर बनवाया।
इस मंदिर में पकी हुई ईंटों और मोटे पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। ऐसा माना जाता है कि एक बार मुगल बादशाह शाहजहां का बेटा दारा शिकोह बीमार पड़ गया। शाहजहां ने पहुंचे हुए वैद्य से अपने बेटे का इलाज कराया, लेकिन दारा ठीक नहीं हुआ। शाहजहां को बाबा सरसाईनाथ के बारे में जानकारी मिली। शाहजहां अपने बीमार बेटे द्वारा को लेकर सिरसा चले आए। यहां पर बाबा सरसाईनाथ ने चमत्कार करते हुए शाहजहां के बेटे दारा शिकोह को जीवन दान दिया। इसके बाद शाहजहां ने मंदिर को जमीन भी दान में दी
और यहां पर एक गुंबद भी बनवाया। डेरा प्रबंधन के पास अरबी में लिखे हुए दस्तावेज हैं जो शाहजहां के आने के प्रमाण हैं। अब इस पूरे मंदिर की और डेरे की कायाकल्प की जा रही है डेरा में माता दुर्गा का भी मंदिर है तो और भगवान शिव और हनुमान जी का भी मंदिर है। डेरा बाबा सरसाई नाथ का इतिहास बहुत पुराना है। जितना पुराना इतिहास मंदिर का है उतना ही पुराना इतिहास मंदिर परिसर के अंदर लगे जाल के पेड़ का है। सिरसा का ऐतिहासिक डेरा बाबा सरसाई नाथ आस्था का केंद्र है। इसे लोग आस्था के साथ पूजा करते हैं।
मंदिर प्रबंधन कमेटी द्वारा वृक्ष का भी उतना ही ख्याल रखा जाता है। जितना मंदिर परिसर का। इसके लिए समय समय पर उचित देखभाल की जाती है। पेड़ के चारों तरफ ईंटों का चबूतरा बनाया हुआ है। इसी के साथ समय समय पर पानी भी दिया जाता है। इस मंदिर में हर वर्ष नवसवंत पर मेला लगाया जाता है। गुरु गोरखनाथ के शिष्य सिद्ध पुरुष बाबा सरसाईनाथ ने ही नववर्ष प्रतिपदा के दिन सिरसा नगरी की नींव रखी थी। इसलिए सिरसा को सरसाईनाथ नगरी कहा जाता है। बताया जाता है कि डेरे में आकर कोई भी सच्चे मन से मुराद करता है। उसकी मनोकामना पूरी होती है।